
छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन स्थल (Major tourist places of Chhattisgarh)
- दामाखेड़ा ( सिमगा, रायपुर) – कबीरपंथियों की पीठ ।
- सिहावा ( धमतरी) – श्रृंगी ऋषि पर्वत से महानदी का उद्गम, कर्णेश्वर महादेव, मातागुड़ी, मोखला मांझी, भिम्बा महाराज।
- चंदखुरी (रायपुर) – प्राचीन शिव मन्दिर।
- रविशंकर जलाशय (धमतरी) – महानदी पर सिंचाई हेतु बहुउद्देश्यीय बाँध ।
- केशकाल घाटी ( जगदलपुर, बस्तर) -5 किमी लम्बी सर्पाकार घाटी, राष्ट्रीय स्मारक गढ़पनोरा, कोपेन कोन्हाड़ी में चौथी शताब्दी की प्राचीन गणेश मूर्ति ।
- ऋषभ तीर्थ गूंजी व शक्ति (बिलासपुर) – तमऊदहरा झरना, पंचवटी, गिद्ध पर्वत।
- रायपुर – छ. ग. राज्य की राजधानी, महामाया मन्दिर, बुढ़ेश्वर महादेव, महंत गुरु घासीदास संग्रहालय, दूधाधारी मठ, बंजारीमाता, बंजारी धाम, सांई मंदिर, जगन्नाथ मन्दिर, सरोना मन्दिर, बंजारी वाले वाला का मजार, सेंट जोसेफ चर्च, नंदनवन, गुरुद्वारा श्री गुरुसिंग सभा।
- पाली (बिलासपुर) – 9 वीं शताब्दी का शिव मन्दिर।
- लाफागढ़ (बिलासपुर) – मेकाल पर्वत की ऊँची चोटी पर किला व जटाशंकरी नदी का उद्गम स्थल, कलचुरियों की प्रथम राजधानी।
- धनपुर (बिलासपुर) – जैन तीर्थंकर की मूर्ति व प्राचीन मन्दिर ।
- कोरबा – भारत का सबसे बड़ा ताप विद्युत्गृह, एल्युमीनियम कारखाना ।
- चांग भखार ( सरगुजा ) – कलचुरी व चौहानकालीन मठों व मन्दिरों के पुरावशेष ।
- बैलाडीला (दन्तेवाड़ा) – लौह- अयस्क की प्राप्ति का प्रसिद्ध स्थान ।
- बिलाई माता – धमतरी नगर में बिलाई माता।
- बिरकोनी (महासमुंद ) – चंडीमाता का मन्दिर।
- चंडी डोंगरी (बागबाहरा) – चंडीमाता का विशाल प्रतिमा।
- फिंगेश्वर (राजिम, रायपुर) – मौली माता, पंच मन्दिर, गरीबनाथ।
- ब्रह्मनी (महासमुंद ) – ब्रह्मनेश्वर महादेव की प्राचीन मन्दिर व श्वेत गंगा नामक जल कुंड।
- झलमला (बालौद-दुर्ग) – गंगा मैया का मन्दिर।
- पत्थर फोड़ माँ कंकालिन (बालौद, दुर्ग) – कंकालिन मैया का पवित्र मन्दिर।
- खल्लारी (महासमुंद) – खल्लारी माता का मन्दिर, नारायण मन्दिर।
- जांजगीर – अपूर्ण विष्णु मंदिर।
- धमधा (दुर्ग) – प्राचीन किला मन्दिर।
- खैरागढ़ (राजनांदगाँव) – एशिया का एकमात्र कला व संगीत विश्वविद्यालय।
- खूंटाघाट (बिलासपुर) – खारंग नदी पर बना बाँध, पिकनिक स्पॉट।
- रुद्री (धमतरी) बाँध – कुलेश्वर महादेव यज्ञ मन्दिर, कबीर पंथियों का धार्मिक स्थल, महानदी के तट पर स्थित रुद्री का निर्माण कांकेर नरेश रुद्रदेव ने करवाया था।
- तान्दुला (दुर्ग) – तान्दुला नदी पर बना बाँध।
- नागपुरा (दुर्ग) – श्री उवसम्हार पार्श्वतीर्थ, प्राचीन जैन मन्दिर।
- बालौद (दुर्ग) – सती चबूतरे व प्राचीन किला मन्दिर।
- खरखरा (दुर्ग) – 1128 मीटर लम्बा मिट्टी का बना बाँध ।
- देव बालौदा (भिलाई, दुर्ग) – प्राचीन शिव मन्दिर।
32.सिंघोड़ा (सरायपाली, महासमुंद) – सिंघोड़ा देवी का प्रसिद्ध मन्दिर।
- तुरतुरिया ( महासमुंद) – बहरिया ग्राम के पास वाल्मीकि आश्रम, काली मन्दिर।
- पलारी (बलौदाबाजार, रायपुर) – ईंट से निर्मित सिद्धेश्वर मन्दिर।
- गिरौदपुरी (रायपुर) – संत घासीदास की जन्मस्थली ।
तालागाँव (प्रमुख पुरातात्विक स्थल) – छत्तीसगढ़ के प्रमुख पुरातात्विक स्थल में एक तालाग्राम बिलासपुर से 30 किमी दूर मनियारी नदी तट पर अवस्थित है। देवरानी जेठानी मन्दिर के अलावा यहाँ विश्व की एक विलक्षण-प्रतिमा प्राप्त हुई है जिसके प्रत्येक अंग में थल-चर, नभ-चर व जलचर प्राणियों को दर्शाया गया है।
मैनपाट (छ. ग. का शिमला) – मैनपाट को छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है। यह सरगुजा जिले में स्थित एक पठार है। यह प्राकृतिक रूप से अत्यधिक समृद्ध है। तिब्बती शरणार्थियों के एक बड़े समुदाय को यहाँ सन् 1962 में बसाया गया है।
भोरमदेव ( महत्वपूर्ण धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल) – रायपुर-जबलपुर सड़क मार्ग पर कवर्धा से 18 किलोमीटर दूर भोरमदेव स्थित है, यह भोरमदेव के प्राचीन मन्दिर इतिहास, पुरातत्व एवं धार्मिक महत्व का स्थल है। चारों ओर से सुरम्य पहाड़, नदी एवं वनस्थली की प्राकृतिक शोभा के मध्य स्थित यह मन्दिर अगाध शान्ति का केन्द्र है। यह मन्दिर ।। वीं शताब्दी का चंदेल शैली में बनी है। इसका निर्माण नागवंशी राजा रामचन्द्र ने कराया था। भोरमदेव मन्दिर को उत्कृष्ट कला, शिल्प व भव्यता के कारण छत्तीसगढ़ का खुजराहों कहा जाता है।
सिरपुर ( प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगरी) – महासमुंद से 36 किमी दूर ऐतिहासिक नगरी सिरपुर 5 वीं से 8 वीं शदी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी रहा है 16 वीं से 10 वीं शदी के मध्य यह नगरी बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केन्द्र था। ईंटों से निर्मित लक्ष्मण मंदिर व बौद्धों का आनन्द प्रभु कुटीर विहार यहाँ के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं। लक्ष्मण मंदिर विष्णु को समर्पित सोमवंशी राजा हर्षगुप्त की विधवा रानी वासटा द्वारा बनवाया गया। सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में अपने ढंग का यह अद्वितीय मन्दिर है। इसके अलावा यहाँ सोमवंशी राजाओं की वंशावली दशनि बाले गंधेश्वर महादेव मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, स्वास्तिक विहार, चंडी मंदिर आदि दर्शनीय हैं। सिरपुर में शैव, वैष्णव, जैन एवं बौद्ध धर्म की प्रतिमाएँ एक साथ प्राप्त हुई हैं। प्रसिद्ध चीनी यात्री हेनसांग यहाँ आए थे।
आरंग ( मन्दिरों का नगर) – छत्तीसगढ़ में आरंग को मन्दिरों का नगर कहते हैं। रायपुर से 36 किलोमीटर दूर बसी इस प्राचीन नगरी का उल्लेख महाभारत में प्राप्त होता हैं। भांडदेव मंदिर (11 वीं 12 वीं शताब्दी से निर्मित) महामाया मन्दिर व बाघ देवल यहाँ के प्रमुख मन्दिर हैं। मांडदेवल मन्दिर में जैन तीर्थंकर नेमीनाथ, अजीतनाथ तथा श्रेयांश की सात फुट ऊँची विराट काले पत्थरों से बनी मूतियाँ हैं। महामाया मन्दिर में एक पत्थर फलक पर 24 जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएँ उकेरी गई हैं। अन्य मन्दिरों में दन्तेश्वरी मन्दिर, चंडी मन्दिर, पंचमुखी महादेव और पंचमुखी हनुमान मंदिर प्रमुख हैं।
शिवरीनारायण ( शिवनाथ और जोंक नदियों का संगम) – जनश्रुति के अनुसार वनवास के समय श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर इसी स्थान पर खाए थे, बिलासपुर से 65 किमी दूर धार्मिक महत्व का स्थल शिवरीनारायण के समीप महानदी, शिवनाथ व जोंक नदियों का पवित्र संगम है। यहाँ नारायण मन्दिर चन्द्रबुद्धेश्वर मन्दिर व लखनेश्वर शिव मन्दिर प्रमुख दर्शनीय है।
बारसुर – बस्तर में स्थित बारसूर नामक गाँव में 11 वीं 12 वीं सदी की देवरली मन्दिर, चन्द्रादित्य मन्दिर, मामा-भांजा मन्दिर, बत्तीसा मन्दिर व गणेशजी की विशाल प्रतिमा का मन्दिर यहाँ की प्रमुख धरोहर है। बारसुर से 8 किमी दूर इन्द्रावती के बोधघाट पर सतधारा जलप्रपात है।
भिलाई (इस्पात कारखाना) – दुर्ग से 10 किमी दूर भिलाई एक औद्योगिक नगरी है। देश का पहला सार्वजनिक इस्पात कारखाना अपनी उन्नत तकनीकी, कौशल व उपकरणों के कारण विशेष दर्शनीय है। भिलाई, में 100 एकड़ में एक अत्यन्त सुन्दर उद्यान व चिड़िया घर मैत्रीबाग पर्यटकों को रोमांचित करता है।
मंडवा महल (कबीरधाम) – भोरमदेव से आधा किमी दूर चौराग्राम के पास पत्थरों से निर्मित शिव- मन्दिर है। यह 14 वीं शताब्दी का जीर्ण-शीर्ण मन्दिर है। इसके बाद बाह्य दीवारों पर मिथुन मूर्तियाँ बनी हैं।
मल्हार ( महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थल) – बिलासपुर जिले में स्थित पुरातात्विक महत्व का ग्राम है। उत्खनन से प्राप्त देउरी मन्दिर, पातालेश्वरी, डिडेश्वरी मन्दिर उल्लेखनीय है। देश की प्राचीनतम चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा भी यहाँ देखने को मिलती है।
राजिम (छ. ग. का प्रयाग) – रायपुर से 48 किमी दूर महानदी, पैरी तथा सोंदूर नदियों के संगम पर स्थित है। इसे ‘छत्तीसगढ़ का प्रयाग’, ‘महातीर्थ’ व ‘छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी’ कहा जाता है। इसका प्राचीन नाम कमल क्षेत्र या पदमपुर था। यहाँ भगवान राजीव लोचन का प्राचीन मंदिर है। यहाँ के मंदिरों में प्रमुख हैं- कुलेश्वर महादेव (14 वीं शदी का), राजेश्वर मंदिर, रामचन्द्र जगन्नाथ मंदिर, खंडोबा तुलजा भवानी का नवीन मंदिर प्रमुख हैं।
लोमष ऋषि आश्रम, भूतेश्वरनाथ पंचेश्वरनाथ मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, महामाया मंदिर, कालभैरव, विश्वकर्मा मंदिर, दत्रातेय मंदिर, सोमेश्वर मंदिर, शीतला मंदिर, पंचकोषी यात्रा आदि दर्शनीय है।
डोंगरगढ़ – डोंगरगढ़ हावड़ा-मुम्बई रेलवे मार्ग पर स्थित राजनांदगाँव से 59 किमी दूर है, यहाँ पहाड़ी के ऊपर माँ बम्लेश्वरी का विशाल मंदिर है। नवरात्रि में यहाँ अपार जन समूह दर्शनार्थ आते हैं। इस मंदिर का निर्माण राजा कामसेन ने करवाया था।
रतनपुर ( धार्मिक एवं ऐतिहासिक नगरी) – बिलासपुर से 25 किलोमीटर दूर रतनपुर एक धार्मिक व ऐतिहासिक स्थल है। रतनपुर कलचुरि और मराठों की प्राचीन राजधानी रही। यहाँ प्रमुख दर्शनीय स्थल महामाया मंदिर, किला तथा रामटेक मंदिर है। महामाया मंदिर का निर्माण कलचुरि राजा रत्नसेन ने करवाया था। रामटेक मंदिर मराठा शासक बिम्बाजी भोसले द्वारा बनवाया गया। पहाड़ी पर स्थित राम का मंदिर व समीप ही किले का भग्नावशेष है, जिसे बादल-महल के नाम से जाना जाता है। खंडोबा तुलजा भवानी का मंदिर, वृद्धेश्वरनाथ महादेव एवं अन्य मंदिर दर्शनीय हैं। कलिंग राजा के पुत्र रत्नदेव ने रतनपुर की नींव डाली थी। यहाँ 126 तालाब थे जिसमें से अधिकांश आज भी विद्यमान हैं। रतनपुर को तालाबों की नगरी कहा जाता है।
चम्पारण्य (वल्लभाचार्य की जन्मस्थली) – रायपुर से 60 किलोमीटर दूर चम्पारण्य वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक वल्लभाचार्यजी की जन्मस्थली होने के कारण यह उनके अनुयायियों का प्रमुख दर्शनीय स्थल है। यहाँ चंपकेश्वर महादेव का पुराना मंदिर है। इस मंदिर के शिवलिंग के मध्य रेखाएँ हैं। जिससे शिवलिंग तीन भागों में बँट गया है जो क्रमश: गणेश, पार्वती व स्वयं शिव का प्रतिनिधित्व करते हैं।