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छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्व। Festivals of Chhattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्व (त्यौहार) । Festivals of Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्व (त्यौहार) । Festivals of Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ के प्रमुख त्यौहार। (Festivals of Chhattisgarh)

छत्तीसगढ़ में ‘त्यौहार’ को ‘तिहार’ कहा जाता है और इनको मनाने के लिए भरपूर तैयारी भी की जाती है। राज्य में मनाए जाने वाला प्रमुख त्यौहार है-

देवारी (दीपावली), दशेरा (दशहरा), गंगा-दशेरा, तीजा (हरितालिका), खमरछट (हलषष्ठी), छेरछेरा (मकर संक्रान्ति), हरेली (हरियाली), फागुन (होली), नवाखाना (नई फसल का त्यौहार), राखी पुन्नी (रक्षाबन्धन), भोजली (कजली), बहुरा चउथ, नेवरात (नवरात्रि), पराछित (प्रायश्चित) आदि।

त्यौहारों (पर्वों) का संक्षिप्त वर्ण निम्नलिखित हैं –

1. हरेली का पर्व – सावन महीने में मनाया जाता है, सावन महीने के पहले रविवार को ‘गाँव बनाना’ (सवनाही बरोना) पर्व मनाते हैं, जिसमें फसल को रोग मुक्त करने के लिए गाँव के बैगा द्वारा ग्राम देवी-देवताओं की पूजा-पाठ होती है।
2. नागपंचमी का पर्व – इन दिन नाग-देवता की पूजा की जाती है।
3. रक्षाबंधन – इसे सावन के महीने में मनाते हैं, इस दिन बहन द्वारा भाई को राखी बाँधी जाती है।
4. कमरछट का पर्व – इस दिन माताएँ अपने बेटों के सुखी जीवन के लिए उपवास रखती हैं और जमीन में सगरी (गड्ढा) खोदकर पूजा अर्चना करती हैं। इस दिन ‘पसहेर चावल’, दही एवं अन्य छह प्रकार की भाजी, लाई, महुवा आदि का ही सेवन किया जाता है। पसहेर धान बिना जूती जमीन, पानी भरे गड्ढों आदि में स्वतः उगता है, कमरछट के दिन उपवास रखने वाली स्त्रियों को जुते हुए जमीन में उपजे किसी भी चीज का सेवन निषेध होता है।
5. कृष्ण जन्माष्टमी – कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व।
6. पोला – इस दिन किसान अपने बैलों को सजाकर पूजा अर्चना करते हैं, बच्चे मिट्टी के बैलों को सजाकर पूजा कर उससे खेलते हैं।
7. तीजा का पर्व – छत्तीसगढ़ का परम्परागत त्यौहार भाद्र मास में माता-पिता अपनी ब्याही लड़कियों को उसके ससुराल से मायके लाते हैं। तीजा में स्त्रियाँ, निर्जला उपवास रखती हैं, दूसरे दिन शिव-पार्वती की पूजा करने के बाद उपवास तोड़ती हैं।
8. गणेश चतुर्थी का पर्व – भाद्र मास के चौथे दिन गणेश भगवान की स्थापना की जाती है।
9. पितर (पितृ मोक्ष) – अश्विनी मास में मृतकों को उनकी मृत्यु तिथि के अनुसार तर्पण दिया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में मृतक अपने मृत्यु-तिथि के दिन अपने परिवार वालों के घर आते हैं जिनका आवभगत किया जाता है। घर में पकवान आदि बनाया जाता है और इन्हीं सामानों को हवन में डाला जाता है जिससे यह माना जाता है कि मृतक ने भोजन प्राप्त कर लिए। यह पक्ष 15 दिनों तक चलता है।
10. नवरात्रि (क्वार) का पर्व – जगह-जगह दुर्गा माता की मूर्ति स्थापित की जाती है, यह दुर्गा पूजा नौ दिनों तक चलती है, इस दौरान माता सेवा भी किया जाता है। माता सेवा गीत में ‘मांदर’ का विशेष रूप से प्रयोग होता है, यह गीत जब चलते रहते हैं तब इसके धुन में माता भक्त ‘बाना’ लेते हैं।

11. दशहरा का त्यौहार – जगह-जगह रावण के पुतले का दहन किया जाता है।
12. देवारी का त्यौहार – दीवावली का त्यौहार ।
13. गौरी-गोरा पूजा – दीपावली के समय शंकर-पार्वती की पूजा की जाती है।
14. गोवर्धन पूजा – दीपावली के दूसरे दिन गाय, बैल, भैंस आदि की पूजा की जाती है व खिचड़ी खिलाई जाती है।
15. मातर – दीपावली के तीसरे दिन रावत जाति द्वारा घर-घर पहुँचकर नृत्य किया जाता है।
16. जेठवनी – तुलसी विवाह के दिन तुलसी की पूजा की जाती है।
17.छेरछेरा का पर्व – पूस पूर्णिमा को ‘छेरछेरा कोठी के धान ला हेरहेरा’ कहते हुए घर-घर लोग माँगने जाते हैं। इस दिन अनेक धार्मिक स्थलों पर मेला भी लगता है।
18. होली – फाल्गुन में होली का त्यौहार।
19. दन्तेश्वरी – यह पर्व बस्तर के जनजातीय लोगों द्वारा मनाया जाता है, यह बस्तर का दशहरा भी कहलाता है, इसमें माँ दन्तेशवरी की पूजा 12 वर्ष से कम आयु की लड़कियों द्वारा की जाती है, लकड़ियाँ नवीन वस्त्रों को धारण करती हैं तथा बालों में फूल लगाती हैं, लड़के नवीन पगड़ी धारण करते हैं।
20. मेघनाद का पर्व – यह पर्व गोंड़ जनजाति का है, इसे फाल्गुन माह के प्रथम पक्ष में मेघनाद की पूजा कर मनाया जाता है, मेघनाद रावण-पुत्र नहीं है। गोड़ों में मेघनाद को सर्वोच्च देवता माना जाता है, अत: उसका एक ढाँचा बनाकर चारों खम्भों पर एक तख्ता लगाकर उसके मध्य में एक छिद्र किया जाता है, इस छिद्र में एक पाँचवाँ खम्भा निकालते हैं, इस खम्भे के ऊपर एक बल्ली इस प्रकार बाँधी जाती है कि बल्ली चारों दिशाओं में घूम सके । आदिवासी इस बल्ली से लटककर चक्कर लगाते हैं ।
21. काक्सार – यह अबूझमाड़ियों द्वारा मनाया जाता है, इसमें लड़के-लड़कियाँ नाच गाना कर रात्रि व्यतीत करते हैं। इसके अलावा बस्तर का सबसे लम्बा 65 दिनों तक चलने वाला दशहरा पर्व गोचना पर्व, जगार, धनकुल रसनवा आदि प्रमुख हैं।
22. नवरात्रि (चैत्र) का पर्व – हिन्दुओं का नया वर्ष चैत्र माह से प्रारम्भ होता है, इस माह के पहले दिन से ही दुर्गा, काली आदि मन्दिरों में मनोकामना ज्योति प्रज्ज्वलित किया जाता है तथा 9 दिनों तक विशेष पूजा- पाठ किया जाता है। इन नौ दिनों का खास महत्व होने के कारण माता के मन्दिरों में श्रद्धालु दर्शकों की भीड़ रहती है, मन्दिर स्थल के आसपास मेला भी लगता है जिसे चैत्र मेला कहा जाता है।
23. अक्ति का पर्व – इस दिन लड़कियाँ पुतरा-पुतरी (पुतला पुतली) का विवाह रचाते हैं, इसी दिन से बीज बोने का प्रारंभ होता है।
24. रथ यात्रा – आषाढ़ मास में भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा, बलभद्र की पूजा कर रथ यात्रा निकाली जाती है।

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