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छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति । Art and Culture of CG

Art and Culture of Chhattisgarh
Art and Culture of Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति । Art and Culture of Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ के लोकनृत्य (Folk dances of Chhattisgarh)

1. सुआ नृत्य – यह नृत्य छत्तीसगढ़ अंचल में दीपावली के अवसर पर शिव-पावर्ती की उपासना तथा रांगो पूजा का नृत्य गीत है, लकड़ी या मिट्टी की ‘सुअना’ की मूर्ति को नृत्यांगनाएँ घेरकर नृत्य करती हैं, नृत्य घेरे में नारियाँ दो दलों में बँटी रहती हैं, एक दल ‘सुअना’ की आराधना में झुकता है, तो दूसरा खड़ा हो जाता है और सुअना के फेरे लगते रहते हैं।

2. करमा नृत्य – करमा नृत्य छत्तीसगढ़ की जनजातियों के गोंड़ और बैगा आदिवासियों, रायगढ़ के उराँव जनजातियों में प्रचलित है, इसका आयोजन नई फसल के आने तथा वर्षा ऋतु शुरू होने पर आदिवासियों द्वारा किया जाता है, करमा नृत्य एवं गीत मस्ती, सजीवता, सरलता एवं संगीत का अद्वितीय सम्मिश्रण है।

3. डंडा या रहस नृत्य – यह नृत्य भी छत्तीसगढ़ अंचल में बहुत प्रसिद्ध है, यह भगवान कृष्ण की रासलीला के रूप में होली तथा दशहरा पर किया जाता है, इस सामूहिक नृत्य में पुरुष ही स्त्रियों जैसे स्वांग रचाते हैं तथा गोल घेरे में बिजली की गति से पाँव थिरकते दिखाई देते हैं।

4. राउत नृत्य – यह नृत्य भी छत्तीसगढ़ में प्रसिद्ध है। श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन पूजा के बाद जब इन्द्र ने अपना शक्ति प्रदर्शन किया तथा एक सप्ताह बाद भगवान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया तथा क्षमा याचना की, उसी समय ब्रज के लोग हर्ष उल्लास से नाच उठे, उसी परम्परा को बनाए रखने के लिए राउत (अहीर) लोग खूब उत्साह से नृत्य करते हैं।

ये लोग ढोल, निशान, मोहरी, झाँझ आदि गण्डवा बाजे के साथ नर्तक चुस्त पहनावे के साथ मोरपंख की कलगी युक्त पगड़ी बाँधे हुए, एक हाथ में लोहे की फरी तथा दूसरे हाथ में लाठी लेकर नाचते हैं। रायपुर में यह नृत्य दीपावली से प्रारम्भ होता है, किन्तु बिलासपुर में देव उठावनी एकादशी से प्रारंभ हो जाता है।

5. उराँव लोगों का सरहुल नृत्य – यह जशपुर के उराँव जनजाति का महत्वपूर्ण लोक नृत्य है। यह लोक नृत्य तथा गीत साल वृक्ष के पूजन से संबंधित है। उराँव जाति के लोगों का मानना है कि इन नृत्यों से ग्राम देवता तथा पूर्वजों की आत्माएँ प्रसन्न होती हैं तथा इसी के आशीर्वाद से गाँव में सुख, शांति एवं समृद्धि बढ़ती है। सरहुल का आयोजन चैत्र पूर्णिमा को समारोहपूर्वक किया जाता है।

6. बार नृत्य – कंवर जाति में बारनृत्य का प्रचलन है, प्रत्येक तीसरे वर्ष इसका आयोजन किया जाता है, एक चबूतरे के चारों ओर परिक्रमा करते हुए यह नृत्य किया जाता है।

7. घासियाबाजा नृत्य – यह नृत्य सरगुजा की घासी जाति का परम्परागत नृत्य है, इसमें शहनाई, ढपला, लौहाती आदि वाद्य यन्त्रों का उपयोग किया जाता है।

8. पंथी नृत्य – यह नृत्य छत्तीसगढ़ की सतनामी जाति द्वारा गुरु घासीदास के जन्म दिवस पर किया जाता है, जो माघ माह की पूर्णिमा को किया जाता है, यह नृत्य छत्तीसगढ़ में बहुत प्रसिद्ध है।

छत्तीसगढ़ के लोकगीत (Folk songs of Chhattisgarh)

1. ददरिया – ददरिया गीतों को छत्तीसगढ़ी लोकगीत का राजा कहा जाता है।

2. चेतपरब और धनकुल गीत – बस्तर क्षेत्र का लोकगीत।

3. लेंजा गीत – बस्तर में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र का लोकगीत।

4. रेला गीत – मुरिया जनजाति का लोकगीत।

5. गौरा गीत – माँ दुर्गा की स्तुति में गाए जाने वाला लोक गीत है, जो नवरात्रि के समय गाया जाता है।

6. बार नृत्य गीत – कंवर जनजातियों का नृत्य गीत ।

7. बिलमा गीत – बैग जनजातियों का मिलन नृत्य गीत है।

8. रीना नृत्य गीत – गोंड़ तथा बैगा स्त्रियों का दीपावली के समय का नृत्य गीत है।

9. पंडवानी गीत – छत्तीसगढ़ी वीर रस का लोक नृत्य गीत जिसे ‘लोक बैले’ भी कहा जाता है।

10. गोंडों नृत्य गीत – गोंड़ जनजातियों का बीज बोते समय का नृत्य ।

11. गौर नृत्य गीत – बाईसन हार्न माड़िया जनजातियों का नृत्य गीत है।

12. गेड़ी नृत्य गीत – गोंड़ युवकों का खेल नृत्य ।

13. गोंचो नृत्य – गोंड़ों का नृत्य ।

14. मड़ई – रावत जाति का नृत्य।

15. रास नृत्य – रहस नृत्य होली के समय का मृत्यु गीत।

16. सींग माड़िया नृत्य – बस्तर जनपद के बैनेले भू-भाग में माड़िया आदिवासियों का नृत्य है।

17. शैला नृत्य – सैला एक मण्डलाकार लोक नृत्य है, मयूर पंख की कलगी, कौड़ियों की बाजूबंद और कम पट्टे युवकों के दल सेना का प्रारम्भ गुरु एवं प्रभु की वंदना से करते हैं।

18. छेरता – मुरिया युवक-युवतियों का सम्मिलित नृत्य ।

19. जंवारा गीत – नवरात्रि के समय गाया जाने वाला माता का गीत ।

20. माता सेवा गीत – चेचक को माता माना जाता है, इसकी शांति के लिए माता सेवा गीत गाया जाता है।

21. बांस गीत – राउत जाति का प्रमुख गीत।

22. देवार गीत – देवार जाति द्वारा घुँघरू युक्त चिकारा के साथ गाया जाने वाला गीत।

23. भड़ौनी गीत – विवाह के समय हंसी मजाक करने के लिए गाया जाने वाला गीत।

24. नागमत गीत – नागदेव के गुणगान व नाग देश से सुरक्षा की प्रार्थना में गाया जाने वाला लोकगीत है जो नागपंचमी के अवसर पर गाया जाता है।

25. दहकी गीत – होली के अवसर पर अश्लीलतापूर्ण परिहास में गाया जाने वाला लोकगीत।

छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य (folk theater of chhattisgarh)

1. नाचा – छत्तीसगढ़ का प्रमुख लोक नाट्य है। नाचा के अन्तर्गत ‘गम्मत’ का विशेष महत्व होता है। प्रहसनात्मक शैली में रचित इन गम्मतों में हजारों लोगों को खुले आसमान के नीचे रातभर आनन्द देने की शक्ति होती है, इसमें स्त्री का अभिनय आज भी पुरुष ही करते हैं। विवाह, मड़ई, मेला, गणेशोत्सव, जवारा उत्सव, दुर्गोत्सव तथा खुशी के किसी भी अवसर पर नाचा का आयोजन किया जाता है।

छत्तीसगढ़ की प्रमुख नाचा मंडली फुड़हर, रायखेड़ा, डांडेसरा, सरगोड़-भेंड्री, बेलसोंढ़ा, अर्जुन्दा, अधोरा, जय सन्तोषी, तेंदूकोना, खट्टी, लाटाबोड, कनेकरा, बगदेई कासवाही आदि हैं। छत्तीसगढ़ की पहली नाचा पार्टी रेवलीनाचा पार्टी है जिसका गठन 1928 में किया गया था। दाऊ दुलार सिंह ‘मदरांजी’ इसके संस्थापक व लालूराम, मदनलाल निषाद, जराठनात निर्मलक, प्रभू राम यादव इसके श्रेष्ठ कलाकार थे।

2. भतरानाट अथवा ( उड़ियानाट) – भतरा नाटं बस्तर में उड़ीसा से आया है इसलिए कुछ लोग उसे उड़िया नाट भी कहते हैं। भतरा नाट में प्रमुख नाट गुरु होता है व नार की बोली भतरी होती है। नाट की कथावस्तु पौराणिक प्रसंग ही है। अभिमन्यु वध, जरासंध वध, कीचक वध, हिरण्यकश्यप वध, रावण वध, दुर्योधन वध, लक्ष्मी पुराण नाट, लंका दहन व कंस वध नामक नाट बस्तर के भतरा नाट में सर्वाधिक प्रचलित है, नाट का मंचन खुले मैदान में होता है तथा सभी रंगकर्मी पुरुष होते हैं।

3. ‘ककसार’ मुड़िया जनजाति का धार्मिक नृत्य – ककसार बस्तर की मुड़िया जनजाति का धार्मिक नृत्य गीत है। मुड़िया लोगों में यह माना जाता है कि लिंगादेव (शंकर) के पास अठारह बाजे थे और उन्होंने सभी बाजे मुड़िया लोगों को दे दिए। इन्हीं वाद्यों के साथ वर्ष में एक बार ककसार पर्व में लिंगादेव को प्रसन्न करने के लिए गाते-बजाते हैं।

4. चंदैनी गोंदा ( प्रेमगाथा) – लोरिक चंदा की प्रेमगाथा को मूलरूप में ‘राऊत’ जाति के लोग गाते हैं। इसके साथ चंदैनी गोंदा नाट्य के रूप में प्रचलित है, एक विशिष्ट छत्तीसगढ़ शैली, खड़े साज के नाचा के रूप में चंदैनी गोंदा की एक विशिष्ट पहचान बन गई है।

छत्तीसगढ़ के अन्य प्रमुख लोक नाट्य – सोनहा बिहान, कारी, हरेली, लोरिक-चंदा, नवा बिहान, गम्मतिहा आदि हैं।

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